Sunday, June 28, 2015

योग पर राजनीति के नुकसान

लोकतंत्र और सूचना प्रौद्योगिकी किसी चीज को निजी रहने नहीं देते। यही इनकी सबसे बड़ी खासियत है और यही सबसे बड़ी कमजोरी। इसी के चलते योग यूरोप में जाकर योगा हो गया और भारत में नए सिरे से लौटकर हिंदुत्ववादी संस्कृति, राजनीति और फिर ब्राह्मणवादी संस्कृति का प्रतीक बन गया। रामदेव के शामिल होने से योग का कारपोरेटीकरण और व्यावसायीकरण हो गया और नरेंद्र मोदी जैसे संघ प्रचारक और प्रधानमंत्री के नेतृत्व में वह सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का एक आसन बन गया। भाजपा के महासचिव और संघ के पूर्व पदाधिकारी राम माधव ने भारत के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की योग दिवस पर उपस्थिति को निशाना बनाकर देश की शीर्ष संस्था के सांप्रदायीकरण का प्रयास किया। लेकिन अब आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड तमाम मुल्लाओं और मौलवियों को योग न करने का निर्देश जारी करके और इसे ब्राह्मणवादी और इस्लाम विरोधी बताकर नया विवाद खड़ा कर रहा है। उस विवाद की आग में घी डालने का काम साध्वी प्राची जैसे हिंदुत्ववादी नेताओं के बयानों से किया जा रहा है। अगर हमें योग की अहमियत को बचाना है और इसे सर्वग्राही बनाकर इसका लाभ धर्म के दायरे से ऊपर उठकर सभी लोगों तक पहुंचाना है तो इस धार्मिक और राष्ट्रवादी श्रेष्ठता का औजार बनाने से बचना होगा। यह अपील हिंदूवादी संगठनों से भी होनी चाहिए और मुस्लिम संगठनों से भी और उन सेक्यूलर साथियों से भी जो मोदी को निशाने पर लेने के लिए किसी भी औजार का इस्तेमाल करने से बाज नहीं आते।
शरीर और मस्तिष्क को स्वस्थ बनाने, उसमें संतुलन बिठाने के लिए किया जाने वाला योग आधुनिक जीवन पद्धति और चिकित्सा पद्धति से एक प्रकार की असहमति भी है। यह असहमति उन बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों, अस्पतालों और बीमा कंपनियों से भी है जो स्वास्थ्य को मुनाफे का धंधा बनाए हुए हैं। उन्होंने सौदर्यीकरण के नाम पर स्त्री शरीरों पर इतने प्रकार के आपरेशन और चीड़फाड़ की है कि अगर उसे यहां उजागर करने बैठ जाएं तो सिहरन दौड़ उठेगी। उस लिहाज से देखा जाए तो ब्यूटी और चिकित्सा उद्योग को लगभग सौंपे जा चुके मानव देह की मुक्ति का एक अभियान है योग। निश्चित तौर पर सूर्य नमस्कार और ओम के उच्चारण को लेकर इस्लाम के मानने वालों की आपत्तियां हैं और उसे देखते हुए भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने इसे योग दिवस से निकाल दिया। पर योग के बहाने देश और विदेश में अंतरधार्मिक संवाद भी होना चाहिए, जो कि भारत में भक्तिकाल और मुगलकाल की सबसे बड़ी विशेषता रही है। इसे देखते हुए ही हजारी प्रसाद व्दिवेदी ने ताजिक नीलकंठी का जिक्र करते हुए कहा था कि किस तरह ज्योतिष के क्षेत्र में भारत और अरब की एकता कायम हुई थी। संभवतः योग भी उसी साझी विरासत का एक रूप बन सकता है अगर उसे किसी को दबाने और चिढ़ाने की बजाय जनस्वास्थ्य और सद्भावना के लिए इस्तेमाल किया जाए।


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