Saturday, March 3, 2012

भ्रष्टाचार के कृपानिधान


बंबई हाईकोर्ट के आदेश के बाद छापे और गिरफ्तारी का आसन्न संकट ङोल रहे कृपाशंकर सिंह एक व्यक्ति नहीं परिघटना हैं। उनका जाल मुंबई से महाराष्ट्र और झारखंड से यूपी के जाैनपुर तक फैला हुआ है। इसमें स्याह और सफेद राजनीति के खिलाड़ियों से लेकर कालेधन के तमाम कारोबारी शामिल हैं। उन्होंने भ्रष्टाचार के तहत जो बेहिसाब संपत्तियां बनाई हैं उन पर पड़ने वाले छापे एक सीमा से आगे नहीं जा सकते। क्योंकि उससे आगे जाने का मतलब है भाजपा नेता गोपीनाथ मुंडे और कांग्रेसी नेता विलास राव देशमुख, सुशील कुमार शिंदे सभी पर गाज गिरना। कृपाशंकर सिंह भ्रष्टाचार की उसी लीक पर चल रहे हैं जो महाराष्ट्र और देश के अन्य बड़े नेताओं ने बनाई है। सरकारी पदों का इस्तेमाल करते हुए पार्टी और परिवार के लिए धन इकट्ठा करना और फिर इधर से उधर हस्तांतरित करना मौजूदा राजनीति की खास कार्यशैली है। इसमें कालेधन को सफेद करना और सरकारी धन को अपना समझने की सार्वभौमिक प्रवृत्ति पाई जाती है। कृपाशंकर सिंह चूंकि बेहद सामान्य स्थिति से राजनीति में आगे बढ़े थे, इसलिए उन्होंने इस काम को कुछ ज्यादा और तेजी से किया। उन्होंने मुंबई में बीएमडब्ल्यू कारों से लेकर धन और विलासिता का ऐसा कारोबार खड़ा किया कि दिल्ली से आने वाला कोई भी बड़ा नेता उनके सत्कार से असंतुष्ट न हो। पर उनकी दिक्कत यह रही कि एक उत्तर भारतीय (जाैनपुरिया)होने के कारण उन्होंने महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी जगह बनाई। एक मामूली सब्जी विक्रेता से महाराष्ट्र के गृह राज्यमंत्री और मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष का पद हासिल करना कोई आसान काम नहीं था। इसके लिए उन्होंने पहले उत्तर भारतीयों को रिझाया और उनके नेता बने। बाद में मराठियों का भी विश्वास जीता और उनकी मदद से महाराष्ट्र की राजनीति में दोनों पैरों पर खड़े हो गए। वे जितनी कुशलता से भोजपुरी और हिंदी बोलते हैं उतनी ही कुशलता से मराठी भी। लेकिन मराठी और भैया लोगों की खिचड़ी बनाकर जो उन्होंने राजनीति की, उसे असली ताकत मिली दिल्ली दरबार से। दिल्ली दरबार और कांग्रेस हाईकमान में लंबी पहुंच होने के चलते वे असरदार बने और इसी के चलते बाद में राज्य की विलास राव देशमुख, सुशील कुमार शिंदे और पृथ्वीराज चव्हाण जैसे नेताओं की मराठी राजनीति ने उनका पत्ता साफ करना शुरू कर दिया। आरटीआई तो एक बहाना है असली खेल मुंबई कांग्रेस के तीन गुटों की खींचतान से निकला है। एक तरफ मुरली देवड़ा, दूसरी तरफ गुरदास कामथ और तीसरी तरफ कृपाशंकर सिंह का गुट है। लगता है अब दोनों गुट मिलकर कृपाशंकर सिंह को निपटाने में लग गए हैं। मजेदार बात यह है कि दो मराठी गुटों ने मिलकर संजय तिवारी नाम के एक पूरबिया का इस्तेमाल करते हुए यह पूरा खेल रचा है। शायद यह दोनों गुट कृपाशंकर को राजनीतिक तौर पर पछाड़ नहीं पा रहे थे, इसलिए वकीलों के समूह के प्रतिनिधि और आरटीआई कार्यकर्ता संजय तिवारी की मदद ली गई। कृपाशंकर सिंह अनजान रहे और अब उनके खिलाफ उत्तर प्रदेश, झारखंड, मुंबई और दूसरी जगहों से इतने तथ्य इकट्ठा हो गए हैं कि उनकी राजनीति डांवाडोल हो रही है। उनका बेटा नरेंद्र मोहन टूजी घोटाले में फंसा हुआ है। उनके समधी और झारखंड के कांग्रेसी नेता कमलेश सिंह मधुकौड़ा के साथ 4000 करोड़ का भ्रष्टाचार करने के आरोप में जेल में हैं। कृपाशंकर सिंह कहते हैं कि उनका राजनीतिक कैरियर खत्म करने के लिए उन्हें फंसाया गया है। उनका कहना है कि वे कानूनी तौर पर लड़ेंगे और जीतेंगे भी क्योंकि वे अपराधी नहीं हैं। उनके समर्थकों का यह भी कहना है कि जिस संजय तिवारी की जनहित याचिका को हाई कोर्ट ने एफआईआर बताते हुए कार्रवाई करने का आदेश दिया है, वह दरअसल उनसे मुंबई महानगर निगम का टिकट चाहता था ताकि वह किसी को दस लाख में बेच सके। जब उन्होंने उनकी मदद नहीं की तो वह उनके पीछे पड़ गया। पर कृपाशंकर सिंह दूध के धुले होते तो बात यहां तक नहीं पहुंचती। उनका नाम भले शंकर की कृपा होने का दावा करता है लेकिन हकीकत में वे राजनीति और भ्रष्टाचार के अर्धनारीश्वर हैं। भ्रष्टाचार विरोधी इकाई ने अपने छापे में उनकी तमाम संपत्तियां, कई बीएमडब्ल्यू कारें और बैंक खाते वगैरह उजागर किए हैं। सन 2008-2009 के बीच कृपाशंकर सिंह की पत्नी मालती देवी के कई बैंक खातों में 65 करोड़ का लेनदेन हुआ है। वे पढ़ी-लिखी नहीं हैं। एक घरेलू धार्मिक महिला हैं। पूजा पाठ करती हैं और पति का कारोबार कामयाबी के शिखर पर पहुंच यही ईश्वर से प्रार्थना करती हैं। उनकी प्रार्थना सुनी भी गई, लेकिन उन्होंने सत और असत की भीतरी आवाज नहीं सुनी, इसलिए आज उनकी प्रार्थना उल्टी पड़ गई है। उनके बेटे नरेंद्र मोहन और बहू अंकिता के समता सहकारी बैंक स्थित खाते में टू जी घोटाले के आरोपी शाहिद बलवा की कंपनी डीबी रियल्टी ने 2008-09 के दौरान 4.5 करोड़ रुपए जमा कराए हैं। पर कृपाशंकर सिंह की धोखाधड़ी के इतने ही मामले नहीं हैं। उन्होंने 2004 और 2009 के विधानसभा चुनावों में अपने दो पैन नंबर दिखाए थे। दोनों के नंबर अलग-अलग हैं और इसका पता राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के एक उम्मीदवार गेनू मोर ने लगाया है। लेकिन उनके झूठ और गोरखधंधे की सीमा यहीं समाप्त नहीं होती। पहले वे अपने को ग्रेजुएट होने का दावा करते थे। बाद में वह सही नहीं निकला। फिर उन्होंने 1966 में हाई स्कूल और 1969 में इंटरमीडिएट करने का दावा किया। लेकिन हाल में संजय तिवारी ने आरटीआई के माध्यम से यह ढूंढ कर निकाला कि वे हायर सेकंडरी इंतहान में फेल हो चुके हैं। कृपाशंकर सिंह फेल हुए हैं या पास यह तो समय ही बताएगा। लेकिन उन्होंने जिस राजनीति की लंबी यात्र तय की है उसमें वे कई बार पास जरूर हुए हैं। सन 2004 और सन 2009 में कांग्रेस पार्टी की जीत में उनका योगदान रहा है। उन्होंने शिवसेना और भाजपा को धूल चटाने में अहम भूमिका निभाई है। आज भी बृहन्न मुंबई नगरपालिका में कांग्रेस को जो सीटें मिली हैं उनमें भी उनकी भू्मिका रही है। पार्टी उनकी राजनीतिक अहमियत को जानती है। हालांकि पहले उन्होंने पूरबिया लोगों के किनारा किया और अब लोग उनसे कर रहे हैं। भ्रष्टाचार में उनके फंसने से हर किसी को खुशी ही होनी चाहिए और उनके कई खास भी खुश हो रहे हैं। लेकिन सवाल यही है कि पार्टी की भीतरी गुटबाजी से चले आरटीआई के इस तीर से घायल कृपाशंकर सिंह निपट भी गए तो क्या हमारी राजनीति और विशेषकर कांग्रेस की राजनीति अपनी सफाई कर पाएगी?